
स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः। स्वकर्मनिरतः सिद्धिं यथा विन्दति तच्छृणु ॥18/45॥ : अपने-अपने स्वाभाविक कर्मों में तत्परता से लगा हुआ मनुष्य भगवत्प्राप्ति रूप परमसिद्धि को प्राप्त हो जाता है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,अपने स्वाभाविक कर्म में लगा हुआ मनुष्य जिस प्रकार से कर्म करके परमसिद्धि को प्राप्त होता है, उस विधि को तू सुन॥18/45॥ भक्ति मार्ग में चल रहे लोग भी सबको अकर्मण्य दिखाई देते हैं | नाचते गाते इस्कोन वाले आपको मुफ्तखोर नजर आते हैं ------------जबकि वे भी कर्म कर रहे होते हैं .............. यही कारण है कि वे दिन रात सुखी व प्रसन्न दिखाई देते हैं ............. उनकी सभी आवश्यकताएं पूरी होती चली जाती हैं सनातन सिद्धांत के अनुसार | एक उदाहरण देती हूँ यहाँ महर्षि रमण का _________________ महर्षि रमण जब घर से नौ दस वर्ष की आयु में भागे, तब उनके तन पर मात्र एक कपड़ा था ........... लेकिन कुछ समय बाद वह भी फट कर टुकड़ा मात्र रह गया जिसे उन्होंने कमर में बाँध लिया ........... एक मंदिर में जाकर वे ध्यान पर बैठ गये .......... लोगों ने मजाक उड़ाया, तरह तरह से परेशान किया, लेकिन उनकी ज...