असली साधू संन्यासियों की पहचान 


साधू संन्यासियों को मुक्त ही रहने दें | वे मुक्त रहेंगे, तभी समाज को कोई दिशा दे पाएंगे | वे मुक्त रहेंगे, तभी उनमें से कोई बुद्ध बन पायेगा कोई महावीर बन पायेगा | उन्हें किताबी धार्मिकता के बंधन में बाँधने की यदि कोशिश करेंगे तो परम्परावादी साधू-समाज तैयार हो जाएगा | और जब साधुओं का समाज बन जाएगा तब पाखण्ड और ढोंग भी बढेगा ही क्योंकि तब साधू संन्यासी बनना एक कर्मकांड, परम्परा मात्र बनकर रह जायेगा | यह बिलकुल वैसी ही स्थिति हो जाएगी जैसे कि ...........सब कुछ लिखा हुआ मिल जायेगा कि ऐसे उठो, ऐसे चलो, ऐसे पहनो, ऐसे खाओ तो साधू संन्यासी |
 कोई भी एक्टिंग शुरू कर देगा और मौलिक साधू संन्यासी आप नहीं ख़ोज पाएंगे इन धूर्त पाखंडियों के बीच में |क्योंकि नकल हमेशा असल से बेहतर दिखते हैं |और समाज हमेशा नकली और आसानी से उपलब्ध होने वाली चीजों के प्रति ही आकर्षित होता है |

असली साधू संतों को परखने का न तो सही मानदण्ड है कोई और न ही मानदण्ड लेकर न जाएँ | केवल साधू संतों को देखें, उनसे चर्चा करें और यदि वे आपके मन-माफिक हैं तो उनसे जुड़ें ज्ञान लें | यदि नहीं तो उनको उनके हाल पर छोड़कर किसी और साधू-संत के पास जाएँ | यदि आप फ्रेम लेकर, पैमाना लेकर, इंची-टेप लेकर साधू खोजने निकलेंगे तो आपको धूर्त ही मिलेंगे क्योंकि साधू-संत मौलिक ही होगा | यह आवश्यक नहीं कि आपके या समाज के बनाये फ्रेम में वह फिट हो जाये | वह आपको खुश करने के लिए कोई उपाय नहीं करेगा और न ही उसे इस बात की चिंता होगी कि आप उनकी तारीफ करते हैं या बुराई | साधू संत किसी नेता या उद्योपति का न तो चापलूस होगा और न ही चाटुकार…..ये सब भी मैंने केवल आपको आइडिया देने के लिए कहा है…इन्हें भी पैमाना मत बनाइएगा | केवल अपने अन्तरमन में, अपने भीतर झांककर पूछियेगा कि सामने जो साधू है वह ढोंगी है या सच्चा |




अंत में कहना चाहती हूँ कि ढोंगी-पाखण्डी बाबा और नेताओं में कोई अंतर नहीं होता | जैसा समाज होगा वैसा ही बाबा मिलेगा और वैसा ही नेता | क्योंकि समाज ही असल को स्वीकार करने व बर्दाश्त करने का साहस नहीं रखता | वह ऐसे नेताओं और बाबाओं के ही पीछे भागते हैं जो उनके भौतिक स्वार्थों की पूर्ति करते हों | कोई लंगर बाँट रहा है तो कोई कम्बल बाँट रहा है, कोई कपड़े बाँट रहा है तो कोई जुमले बाँट रहा है | बस जनता इन्हीं सब से खुश रहती है | लेकिन यदि जनता को कोई जागृत होने के लिए कहे, होश में आने के लिए कहे, आत्मनिर्भर होने के लिए कहे, आपस में सहयोगी होने के लिए कहे, भेदभाव से मुक्त होने के लिए कहे…वह इनको अपना शत्रु नजर आने लगता है | 




या तो ऐसे साधू-संन्यासी को सुनने कोई आएगा ही नहीं या फिर किसी प्रकार वह प्रसिद्ध होने लगे तो पत्थर लेकर पहुँच जायेंगे या बदनाम करने के उपाय खोजने लगेंगे |
क्योंकि ऐसे साधू-संन्यासी इनके स्वार्थों की पूर्ति में बाधक होते हैं, ये इनके नींद या बेहोशी में बाधक होते हैं | इसलिए ऐसे साधू-संन्यासी या तो एकांत में जीते हैं या गुमनामी में |


Comments

Popular posts from this blog