जगत मिथ्या है ...............!!!!!!!!!!!!!
यह ऐसा वाक्य है जिसे सभी ने रट लिया बिना यह समझे कि ऋषियों ने यह क्यों कहा |
जगत मिथ्या कहने वाले पंडितों को कभी तीर्थों में देखो कैसे एक एक रूपये लिए लड़ते मंरते मिलेंगे | यदि आपने उनको कम पैसे दिए तो दुनिया भर के श्राप देने से नहीं चूकेंगे | और कई बार तो मैंने स्वयं उनको भद्दी गालियाँ देते भी सुना है उन लोगों को जो दक्षिणा दिए बिना निकल जाते हैं |
जगत मिथ्या है कहने वालों के मंदिरों से कभी किसी गरीब किसान के लिए फूटी कौड़ी नहीं निकलती चाहे वह आत्महत्या कर ले | लेकिन सोने की ईंटों के रूप में गोदामों पड़े रहते हैं वह मिथ्या धन |
जगत मिथ्या कहने वालों को नेताओं और पूंजीपतियों की चापलूसी करते देखा है मैंने और आज भी कई ऐसे संतों-महंतों से परिचित हूँ जो जगत मिथ्या है का पाठ पढ़ाते हैं, लेकिन बुढ़ापे की चिंता में घुले जा रहें हैं |
एक बात स्पष्ट रूप से समझ लीजिये कि जैसे ही आप कहते हैं जगत मिथ्या है, उसी क्षण ईश्वर भी मिथ्या हो जाता है और सारे धर्म और धर्म शास्त्र मिथ्या हो जाते हैं | क्योंकि जगत मिथ्या है तो वक्ता और श्रोता भी मिथ्या है | जगत मिथ्या है तो आँख, नाक कान, मुँह सभी मिथ्या हो जाते हैं | फिर सारे साक्ष्य और उदाहरण मिथ्या हो जाते हैं |
जगत मिथ्या होता तो नारायण को अवतार नहीं लेना पड़ता धरा पर | जगत मिथ्या होता तो महाभारत में श्री हरी को इतना लम्बा प्रवचन नहीं देना पड़ता | जगत मिथ्या होता तो उन्हें यह नहीं कहना पड़ता कि मैं ही हर कण में हूँ, हर प्राणी में हूँ, सर्वत्र हूँ |
यदि ईश्वर सर्वत्र हैं, हर कण में हैं, हर प्राणी में हैं तो फिर जगत मिथ्या कैसे हो सकता है ???????????
जगत मिथ्या नहीं है, केवल हम अपना शरीर बदलते हैं लेकिन हम समाप्त नहीं हो जाते | जो लोग किसी की हत्या करके समझते हैं कि उन्होंने उसे मिटा दिया, वे मूर्ख हैं | उन्होंने केवल इतना किया है कि किसी यात्री के कपड़े को नष्ट कर दिया और मान लिया कि उस यात्री को नष्ट कर दिया | जबकि केवल उसकी यात्रा को थोड़े समय के लिए बाधित किया है, जब तक कि उसे नए कपड़े नहीं मिल जाते | यानि किसी की हत्या से इतनी ही देर के लिए मुक्ति मिलेगी जितनी देर उसे नया शरीर नहीं मिल जाता | फिर वही व्यक्ति नयी उर्जा के साथ वापस आता है और अपना प्रतिशोध लेता है |
महाभारत में भी अम्बा ने शिखंडी के रूप में जन्म लिया और भीष्म के वध में सहायक बनी |
इसलिए जगत मिथ्या है जिस अर्थ में कहा गया है उसे समझने का प्रयास करें, केवल रट लेने से जगत मिथ्या नहीं हो जाता | भौतिक जगत और आध्यामिक जगत एक ही सिक्के के दो पहलू हैं | एक की निंदा करके दूसरे से पार नहीं पा सकेंगे कभी |
यही सत्य है | मुझे अभी अपना सन्देश आपको देने के लिए इस भौतिक संसाधन का प्रयोग ही करना पड़ेगा, टेलीपैथी के प्रयोग निष्फल हो जायेंगे वर्तमान परिस्थिति में | क्योंकि न तो मैंने इसे साधा है और न ही आपने |
साधू-सन्तों को भी आने जाने के लिए टिकट खरीदना पड़ता है कोई हवा में इच्छा शक्ति के बल से उड़ कर नहीं जाते कोई | इसलिए जगत की निंदा करने से बचे और उसे सहजता से स्वीकार करें |
क्योंकि इस सृष्टि के कण कण में ईश्वर का वास है और जगत मिथ्या हुआ तो ईश्वर भी मिथ्या हो जाएगा |
Comments
Post a Comment