अक्सर आपने देखा होगा कि कुछ लोग साधना करते हैं | समाज उन्हें साधक के नाम से जानता है | कई बार आपने देखा होगा कि कोई व्यक्ति कहता है कि मैं फ़लाने देवी-देवता की साधना करने जा रहा हूँ, या मन्त्र साधने जा रहा हूँ….
तो समाज के मन में साधना शब्द जुड़ गया धार्मिकता से |
ऐसी मान्यता व्याप्त हो गयी कि साधना केवल हिन्दू साधू-संत या पंडित-पुरोहित नस्ल के लोग ही करते हैं, बाकी लोग साधना से परे होते हैं |
वास्तव में साधना प्रत्येक प्राणी करता है | जीवन संग्राम या जीते रहने के लिए साधना अनिवार्य है और जो साधना नहीं कर पाता, वह मिट जाता है |

तो साधना वास्तव में है क्या ?????????

साधना है किसी भी ऐसी विद्या में पारंगत होना जो उसके जीवन में नियमित आवश्यकता हो | जैसे रिक्शा चालक के लिए रिक्शा खींचना दिन भर | अब कोई हमसे या आपसे कहे रिक्शा खींचने तो हम आधे घंटे भी रिक्शा नहीं खींच पायेंगे, लेकिन रिक्शा चालक दिन भर न जाने कितनी सवारियों को अपने गंतव्य तक पहुंचाता है | इसी प्रकार ट्रक ड्राईवर है जो रात-दिन ड्राइव करने में पारंगत होता है |
आप नेवले को देख लें, वह साँप से लड़ने में पारंगत होता है, जबकि वह न तो कभी स्कूल/कॉलेज जाता है, न ही शओलिन जाकर मार्शल आर्ट्स सीखता है | फिर भी चुस्ती फुर्ती में ब्रूसली से कम नहीं होता |
इस प्रकार किसी भी जीवनोपयोगी विद्या में निपुण होने के लिए साधना की आवश्यकता होती है | ट्रेनिंग लेना एक बात है, लेकिन साधना करना बिलकुल ही अलग बात है |
उदाहरण के लिए एक लड़की ने मुझे बताया कि वह मार्शल आर्ट चैम्पियन रह चुकी हैं कॉलेज में | लेकिन उसे गुंडे-बदमाशों से डर लगता है, इसलिए उसे सुबह सुबह साइकिलिंग करने से भी डर लगता है | यानि वह अकेले कहीं नहीं आ जा सकती और गुंडे-बदमाश मिल गये तो अपनी जान बचाने के लिए कहीं छुप कर बैठी रहेगी |
अब ऐसे मार्शल आर्ट्स चैपियन बनने से तो बेहतर था कि होमसाइंस ले लेती | कम से कम खाना बनाने, घर को साफ़ सुथरा रखने की कला तो सीख लेती |
तो उक्त लड़की ने मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग ली थी, न कि साधना की थी | ट्रेनिंग से आप किसी कला को सीख सकते हैं, और साधना से आप उसमें दक्ष हो सकते हैं और जीवनोपयोगी बना सकते हैं |
साधना यानि आम्त्सात करना | आपके शरीर और मन एक लय में बंध जाएँ, अलग से सोचने की आवश्यकता ही न पड़े कि क्या करना है | एक मार्शल आर्ट्स में दक्ष व्यक्ति सडक में चलते समय केले के छिलके में पैर पड़ने पर फिसलने पर भी वैसे नहीं गिरेगा जैसे कि सामान्य व्यक्ति गिरता है | वह अपने हाथों से अपने पूरे शरीर को जमीन पर गिरने से रोक लेगा और ऐसे उठ खड़ा होगा, जैसे कुछ हुआ ही नहीं |
अकेले भी कहीं जा रहा हो, तब वह किसी गुंडे बदमाश से भयभीत नहीं होगा, उलटे यदि वे लोग पंगा लें, तो उनको ही भयभीत कर देगा या बुरी तरह घायल कर देगा |
समाज की यह भी धारणा है कि हिंसक खेलों से बच्चों में हिंसक प्रवृति जन्म लेती है | जबकि मेरा मानना है कि ऐसे खेलों से बच्चों के भीतर जो हिंसक प्रवृति जन्मजात होती है, वह सध जाती है | उसे अपनी हिंसक वृति को नियंत्रित करना आ जाता है और साथ ही वह अपने क्रोध को भी नियंत्रित करना सीख लेता है |

इसी प्रकार युद्धकला सीखना भी व्यक्ति को स्वयं में नियंत्रण रखना सिखाता है | क्योंकि युद्ध का नियम है पहले स्वयं पर नियंत्रण तभी शत्रु पर नियंत्रण संभव है | जिसका स्वयं पर ही नियंत्रण न हो, वह शत्रु पर भी नियंत्रण कर पाने में असमर्थ होता है |
इसलिए साधना आवश्यक है | जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में साधना की आवश्यकता होती है, फिर किसी नेता या अधिकारी की चाटुकारिता की विद्या ही क्यों न हो |
तो आपका जो भी क्षेत्र हो, उसके अनुरूप जीवनोपयोगी विद्या को चुनिए और कठिन साधना करके उसे जीवनोपयोगी बनाइये | साधना यानि किसी भी विद्या में अपनी क्षमता के श्रेष्ठतम स्तर तक पहुँचने का अभ्यास |



ट्रेनिंग एक दो घंटे या पूरे दिन की हो सकती है, लेकिन साधना अनवरत चलती रहती है तब तक जब तक कि अद्वैत स्थापित न हो जाए |



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