शरीर और इन्द्रियों के प्रति कठोर बनिए
शरीर और इन्द्रियों के प्रति कठोरता का व्यवहार न किया जाए,
तब तक कर्मों को धक्का लगता ही नहीं।
शरीर को संभालने, उसी की सेवा में लगा व्यक्ति धर्म कर नहीं सकता।
शरीर की पूजा में से सब पाप पैदा होते हैं।
भगवान की पूजा करने की फुरसत शरीर के पुजारी को नहीं मिलती।
आजकल शरीर की गंदगी दूर करने के लिए
आत्मा में गंदगी भरी जा रही यह कैसी मूर्खता है।
भगवान शरीर के प्रति कठोर थे, इसीलिए कर्मों के कठोर बन सके।
शरीर कष्ट भोगने का, या सुख भोगने का साधन ?????????
शरीर और इन्द्रियों के प्रति कठोरता का व्यवहार न किया जाए,
तब तक कर्मों को धक्का लगता ही नहीं।
शरीर को संभालने, उसी की सेवा में लगा व्यक्ति धर्म कर नहीं सकता।
शरीर की पूजा में से सब पाप पैदा होते हैं।
भगवान की पूजा करने की फुरसत शरीर के पुजारी को नहीं मिलती।
आजकल शरीर की गंदगी दूर करने के लिए
आत्मा में गंदगी भरी जा रही यह कैसी मूर्खता है।
भगवान शरीर के प्रति कठोर थे, इसीलिए कर्मों के कठोर बन सके।
शरीर कष्ट भोगने का, या सुख भोगने का साधन ?????????
शरीर से सुख भोगने से संसार घटता या कष्ट भोगने से संसार घटता है ????????
जिस शरीर से सुख भोगा जा सकता था,
उससे भगवान ने कष्ट ही सहन किए,
यह जन्म भोग के लिए है’,
ऐसा मानने वालों ने दरअसल भगवान को माना ही नहीं है। ‘
यह जन्म त्याग के लिए है’,
ऐसा मानने वालों ने ही भगवान को सही रूप में माना है।
संसार में लगभग सभी जीव सुख में सडने के लिए
दुःख में संतप्त होने के लिए हैं।
सुख के समय में इन जीवों में ऐसी सडान पैदा हो जाती है,
जिसके कारण ये जीव दुःख में संतप्त होने के लिए चले जाते हैं।
ऐसा क्रम चलता रहता है।
इसमें जागृति आए, सुख के प्रति विरक्ति पैदा हो तो बेडा पार हो जाए !!
उससे भगवान ने कष्ट ही सहन किए,
यह जन्म भोग के लिए है’,
ऐसा मानने वालों ने दरअसल भगवान को माना ही नहीं है। ‘
यह जन्म त्याग के लिए है’,
ऐसा मानने वालों ने ही भगवान को सही रूप में माना है।
संसार में लगभग सभी जीव सुख में सडने के लिए
दुःख में संतप्त होने के लिए हैं।
सुख के समय में इन जीवों में ऐसी सडान पैदा हो जाती है,
जिसके कारण ये जीव दुःख में संतप्त होने के लिए चले जाते हैं।
ऐसा क्रम चलता रहता है।
इसमें जागृति आए, सुख के प्रति विरक्ति पैदा हो तो बेडा पार हो जाए !!

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