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Showing posts from July, 2017
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सभी आदरणीय सदस्यो को सादर वन्दन 🙏🙏🙏 अगर हम किसी को मतलबी कहें तो वो शायद हमसे झगड़ा करने लगेगा। मगर ये अटूट सत्य हैं कि हममें से 95 % लोग मतलबी हैं । हम अपनो के साथ मतलब के सम्बंध रखते रखते भगवान से भी मतलब के सम्बंध निभाते है ।     एक बात जरूर सोचना जब आप घर के लिये या मन्दिर के लिये भगवान की कोई मूर्ति लाते हो तो क्या मोलभाव नही करते ?????  क्या भगवान का कोई मोलभाव होता हैं ??      दूसरी बात जब आप मन्दिर में  भगवान को जो चावल अर्पित करते तो जो आप घर मे बासमती चावल खाते वही चढ़ाते या हल्के सस्ते चावल अर्पित करते  हो । सोचिये ??????      क्या किसी गरीब को आपने कभी घर बुलाकर घी लगाकर पकवान खिलाये या बासी रोटी जो बची वो दी सोचिये ??????      क्या आप अपने इष्ट देव के मंदिर मे जाकर उनकी सेवा निस्वार्थ भाव से की ?????     क्या आप जानवर को जो अन्न खिलाते वो सस्ता खरीदते हो ????     दरअसल जब हम बीमार पड़ते,या कुछ समस्या आती हैं तो भगवान की शरण मे जाते और कुछ मन्नत मांग लेते,ईश्वर के आश...
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अधिकतर लोगों की  धार्मिकता किताबी धार्मिकता है | बिलकुल वैसे ही जैसे कोई रट्टामार, फर्रे चलाकर डिग्रीधारी हो जाता है | इंटरव्यू में भी रटे-रटाये उत्तर देता है और इंजीनयर भी बन जाता है | फिर पुल गिरता है, बिल्डिंग गिरती है उस इंजीनियर द्वारा बनाए हुए और कई लोग मरते हैं | कोर्ट केस का ड्रामा होता है और इंजीनियर बाइज्जत बरी होता है | बस यही सब धर्म के ठेकेदारों के साथ भी होता है | और यही सब होता है खोखले धार्मिकों के साथ | हर जगह लुटते हैं धर्म के नाम पर फिर भी अक्ल नहीं आती |  कुछ अच्छे  सिरफिरे सही राह दिखाने की कोशिश करते हैं, जब सही धर्म समझाने की कोशिश करते हैं तो घमंड आ जाता है सामने कि हमें तो किताबें पढ़ी हैं...चाहे समझ में धेले भर न आयी हो, लेकिन धार्मिकता की डिग्री तो मिली हुई है | इसलिए अकड़ है | लाजवंती के पौधे की तरह छुईमुई आपकी धार्मिक भावनाएँ आहत हो जातीं हैं | फिर मैं इस्लाम और मजहबो  की  दुश्मन हो जाती हूँ या फिर हिन्दू और हिंदुत्व का | लेकिन इनके अपने अपने टोलियो के ठेकेदार जो धंधा जमाये बैठे हैं धर्म का, उनसे इनको कोई शिकायत नहीं | क्यो...
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हैरान होती हूँ मैं कि कई शताब्दियाँ गुजर गयीं लोगों को  धार्मिक ,  ईश्वरीय   किताबों को ढोते हुए, रटते हुए, लेकिन…..धर्म समझ में नहीं आया |  मत, पंथ, सम्प्रदाय, परम्पराओं और कर्मकांडों को लोगों ने धर्म बना दिया | धर्म को अंग्रेजी में रिलिजन (religion) और ऊर्दू में मजहब कहते हैं, लेकिन यह उसी तरह सही नहीं ‍है जिस तरह की दर्शन को फिलॉसफी (philosophy) कहा जाता है। दर्शन का अर्थ देखने से बढ़कर है। उसी तरह धर्म को समानार्थी रूप में रिलिजन या मजहब कहना हमारी मजबूरी है। मजहब का अर्थ संप्रदाय होता है। उसी तरह रिलिजन का समानार्थी रूप विश्वास, आस्था या मत हो सकता है, लेकिन धर्म नहीं। हालांकि मत का अर्थ होता है विशिष्ट विचार। कुछ लोग इसे संप्रदाय या पंथ मानने लगे हैं, जबकि मत का अर्थ होता है आपका किसी विषय पर विचार। यतो ऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः। धर्म वह अनुशासित जीवन क्रम है, जिसमें लौकिक उन्नति (अविद्या) तथा आध्यात्मिक परमगति (विद्या) दोनों की प्राप्ति होती है। धर्म का शाब्दिक अर्थ : धर्म एक संस्कृत शब्द है। धर्म का अर्थ बहुत व्यापक है। ध + र् + म = धर्...
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क्या हमारे ऋषि मुनि साई की उपासना करते थे ????????? क्या हमारे साधु-संत साई की पूजा करते थे ???????????? क्या हमारे भगवान ने या हमारे महापुरुषों ने कभी "साई" का नाम भी लिया ???????????? क्या हमारे किसी भी धर्मशास्त्र में साई का नाम है ????????? क्या साई के लक्षण, कर्म या आचरण भगवान या संतो जैसे रहे????????? ----------- इन प्रश्नो का एक ही उत्तर है -- नहीं , नहीं नहीं । लेकिन वो मूर्ख लड़के लडकिया जो बचपन में पाँच रुपये की डेरीमिल्क का लालच दिये जाने पर, पड़ोसी को 'पापा' कह दिया करते थे , ऐसे ही व ऐसी प्रवृत्ति के मूर्ख जन्तु ही , सांसारिक स्वार्थ के सिद्ध होने की लालसा में, साई व साई जैसे पाखंडियो को बाप भगवान सब बोल देते है। जो भी लोग कहते है कि इनकी भावनाओ का सम्मान करे , आहत न करे, वो एक प्रयोग करके देखे --- अपनी माता व भाई बंधुओ के सामने ... पड़ोसियो को पापा कहे " ... तब परिणाम देखे और फिर सोचे --- भावना अपने श्रेष्ठ अद्वितीय परमपिता को छोडकर, किसी निकृष्ट को बाप कहने वाले की आहत होती है , या अपने पिता का महत्व व पड़ोसी की निकृष्टता जानने वाली माँ ...
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राज-नेताओं पर व्यंग्य या मजाक केवल मनोरंजन के उद्देश्य से करिए, उसे जीवन का उद्देश्य मत बना लीजिये |  क्योंकि व्यंग्य, कटाक्ष, आरोप आदि से वे लोग बहुत ऊँचे उठ चुके होते हैं | उनपर इन सब बातों का कोई असर नहीं करता | वस्तुतः वे लोग आध्यात्मिक चेतना के उस स्तर पर होते हैं, जहाँ सुख-दुःख, मान-अपमान, अपना-पराया सब व्यर्थ हो जाते हैं | जैसे एक ध्यानी केवल अपने ध्यान में मग्न रहता है, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसके पड़ोस में कोई मर रहा है या जी रहा है | उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी पर कोई अत्याचार हो रहा है या नहीं हो रहा है | उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कोई भूख से मर रहा है या प्यास से मर रहा है... वह तो परमानन्द में खोया रहता है | वह तो ईश्वर के दर्शनों में खोया रहता है | ठीक इसी प्रकार नेतागण भी होते हैं | वे ईश्वर का ही भौतिक रूप ऐश्वर्य के दर्शन में खोये रहते हैं | उन्हें सिवाय ऐश्वर्य के और कुछ नहीं दिखाई देता, उन्हें जनता के दुःख, समस्याएँ आदि नजर नहीं आती....और जब ऐश्वर्य सामने हो, जय जयकार करते दुमछल्ले सामने हों...तो स्वाभाविक ही है कि व्यक्ति परमानन्द को प्राप्त हो जाता ...
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ध्यान रखें कि कोई भी धार्मिक किताब किसी को भी धार्मिक नहीं बना सकती यदि वह धार्मिक प्रवृति का नहीं है या उसकी चेतना जागृत नहीं हुई है | यह चेतना कब किस समय जागृत होगी वह भी कोई तय नहीं कर सकता | उदाहरण के लिए धार्मिक किताबें तो आईसीसी अलकायदा भी पढ़ते हैं ............धार्मिक किताबें तो कसाई भी पढता है ठग, चोर उचक्के भी | मंदिर मस्जिद भी सभी तरह के लोग जाते हैं | वे लोग भी सारे कर्मकांड करते हैं पूजा पाठ करते हैं जो किसी को एक रूपये की सहायता नहीं करते लेकिन दौलत की तिजोरी भरी पड़ी है और वे लोग भी वही सब करते हैं जिनके पास एक वक्त की रोटी भी नहीं होती....लेकिन अगर एक रोटी नसीब से मिल भी गई तो किसी दूसरे को अपनी आधी रोटी देने में भी नहीं झिझकते |
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जगत मिथ्या है ...............!!!!!!!!!!!!!  यह ऐसा वाक्य है जिसे सभी ने रट लिया बिना यह समझे कि ऋषियों ने यह क्यों कहा | जगत मिथ्या कहने वाले पंडितों को कभी तीर्थों में देखो कैसे एक एक रूप ये लिए लड़ते मंरते मिलेंगे | यदि आपने उनको कम पैसे दिए तो दुनिया भर के श्राप देने से नहीं चूकेंगे | और कई बार तो मैंने स्वयं उनको भद्दी गालियाँ देते भी सुना है उन लोगों को जो दक्षिणा दिए बिना निकल जाते हैं | जगत मिथ्या है कहने वालों के मंदिरों से कभी किसी गरीब किसान के लिए फूटी कौड़ी नहीं निकलती चाहे वह आत्महत्या कर ले | लेकिन सोने की ईंटों के रूप में गोदामों पड़े रहते हैं वह मिथ्या धन | जगत मिथ्या कहने वालों को नेताओं और पूंजीपतियों की चापलूसी करते देखा है मैंने और आज भी कई ऐसे संतों-महंतों से परिचित हूँ जो जगत मिथ्या है का पाठ पढ़ाते हैं, लेकिन बुढ़ापे की चिंता में घुले जा रहें हैं | एक बात स्पष्ट रूप से समझ लीजिये कि जैसे ही आप कहते हैं जगत मिथ्या है, उसी क्षण ईश्वर भी मिथ्या हो जाता है और सारे धर्म और धर्म शास्त्र मिथ्या हो जाते हैं | क्योंकि जगत मिथ्या है तो वक्ता और श्रोता भी मिथ्...
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कब तक सोते रहोगे ?  😬   ❓ ❓ ❓ बंगाल के अधिकतर जिलों में हिन्दू 7 बजे के बाद घर से निकलना बंद कर देते हैं। आम दिनों में भी "मुस्लिम समुदाय" के लोगों का उपद्रव सडकों पर जारी रहता है। बशीरहाट, जैसे जगह पर जहाँ मुस्लिम आबादी 60% से ज्यादा है, वहां हिंदू लड़कियों को स्कूल तक भेजना बंद है। हिन्दू लड़कियों, का अपहरण कर ले जाना आम बात है और 'बंगाल की पुलिस', रिपोर्ट लिखना तो दूर उलटे हिन्दुओं को, इलाका छोड़कर चले जाने को कहती है । कालीचक, इलमबाजार, मल्लारपुर, तेहट्टा, दुबराजपुर में चारों त रफ से इस दंगाई और आग से घिरे, "हिन्दुओं की दुर्दशा" किसी को नहीं मालूम है।  💢 😦 पश्चिम बंगाल में, केंद्र ने अपने अधिकार में आने वाले प्रतिष्ठानों जैसे रेलवे स्टेशन, NTPC आदि जगहों पर BSF और SSB की तैनाती पिछले 'नवंबर' को किया था । ये बल घुमते रहते हैं और कुछ राहत लोगों को मिलता है। चूंकि बंगाल का दंगा बड़े पैमाने पर हो गया है तो अब प्रकाश में आया है। लेकिन जो मामले हर रोज जगह जगह होते रहते हैं, 'उनका कोई रिपोर्ट नहीं बनता' और ना ही उसकी खबरें बाहर आ पाती है। ...