राज-नेताओं पर व्यंग्य या मजाक केवल मनोरंजन के उद्देश्य से करिए, उसे जीवन का उद्देश्य मत बना लीजिये |
क्योंकि व्यंग्य, कटाक्ष, आरोप आदि से वे लोग बहुत ऊँचे उठ चुके होते हैं | उनपर इन सब बातों का कोई असर नहीं करता |
वस्तुतः वे लोग आध्यात्मिक चेतना के उस स्तर पर होते हैं, जहाँ सुख-दुःख, मान-अपमान, अपना-पराया सब व्यर्थ हो जाते हैं |
जैसे एक ध्यानी केवल अपने ध्यान में मग्न रहता है, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसके पड़ोस में कोई मर रहा है या जी रहा है | उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी पर कोई अत्याचार हो रहा है या नहीं हो रहा है | उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कोई भूख से मर रहा है या प्यास से मर रहा है...
वह तो परमानन्द में खोया रहता है | वह तो ईश्वर के दर्शनों में खोया रहता है |
ठीक इसी प्रकार नेतागण भी होते हैं | वे ईश्वर का ही भौतिक रूप ऐश्वर्य के दर्शन में खोये रहते हैं | उन्हें सिवाय ऐश्वर्य के और कुछ नहीं दिखाई देता, उन्हें जनता के दुःख, समस्याएँ आदि नजर नहीं आती....और जब ऐश्वर्य सामने हो, जय जयकार करते दुमछल्ले सामने हों...तो स्वाभाविक ही है कि व्यक्ति परमानन्द को प्राप्त हो जाता है |
राजनेता और अध्यात्मिक रूप से बहुत ऊँचे उठ चुके, साधू-संत-महतों में कोई अंतर नहीं होता | दोनों को ही आम लोगों की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं रहता |
हाँ जब भी ये लोग ऐश्वर्य या परमानन्द के पर्वत से नीचे उतरते हैं, तभी इन्हें जनता का दुःख दिखाई देता है | वह भी केवल इसलिए कि अब अपना स्वार्थ है...भूख लगी है इसलिए रोटी चाहिए किसी को, तो किसी को वोट चाहिए | भूख मिटी और फिर परमानन्द में खो गये...चिलम लगाकर |
इसलिए राजनेताओं और साधू-संतों-महंतों में बहुत ही गहरा सम्बन्ध होता है | इसीलिए धर्मों के ठेकेदार और राजनीती के ठेकेदारों में चोली-दामन का साथ होता है |
क्योंकि व्यंग्य, कटाक्ष, आरोप आदि से वे लोग बहुत ऊँचे उठ चुके होते हैं | उनपर इन सब बातों का कोई असर नहीं करता |
वस्तुतः वे लोग आध्यात्मिक चेतना के उस स्तर पर होते हैं, जहाँ सुख-दुःख, मान-अपमान, अपना-पराया सब व्यर्थ हो जाते हैं |
जैसे एक ध्यानी केवल अपने ध्यान में मग्न रहता है, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसके पड़ोस में कोई मर रहा है या जी रहा है | उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी पर कोई अत्याचार हो रहा है या नहीं हो रहा है | उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कोई भूख से मर रहा है या प्यास से मर रहा है...
वह तो परमानन्द में खोया रहता है | वह तो ईश्वर के दर्शनों में खोया रहता है |
ठीक इसी प्रकार नेतागण भी होते हैं | वे ईश्वर का ही भौतिक रूप ऐश्वर्य के दर्शन में खोये रहते हैं | उन्हें सिवाय ऐश्वर्य के और कुछ नहीं दिखाई देता, उन्हें जनता के दुःख, समस्याएँ आदि नजर नहीं आती....और जब ऐश्वर्य सामने हो, जय जयकार करते दुमछल्ले सामने हों...तो स्वाभाविक ही है कि व्यक्ति परमानन्द को प्राप्त हो जाता है |
राजनेता और अध्यात्मिक रूप से बहुत ऊँचे उठ चुके, साधू-संत-महतों में कोई अंतर नहीं होता | दोनों को ही आम लोगों की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं रहता |
हाँ जब भी ये लोग ऐश्वर्य या परमानन्द के पर्वत से नीचे उतरते हैं, तभी इन्हें जनता का दुःख दिखाई देता है | वह भी केवल इसलिए कि अब अपना स्वार्थ है...भूख लगी है इसलिए रोटी चाहिए किसी को, तो किसी को वोट चाहिए | भूख मिटी और फिर परमानन्द में खो गये...चिलम लगाकर |
इसलिए राजनेताओं और साधू-संतों-महंतों में बहुत ही गहरा सम्बन्ध होता है | इसीलिए धर्मों के ठेकेदार और राजनीती के ठेकेदारों में चोली-दामन का साथ होता है |
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