सभी आदरणीय सदस्यो को सादर वन्दन 🙏🙏🙏
अगर हम किसी को मतलबी कहें तो वो शायद हमसे झगड़ा करने लगेगा। मगर ये अटूट सत्य हैं कि हममें से 95 % लोग मतलबी हैं । हम अपनो के साथ मतलब के सम्बंध रखते रखते भगवान से भी मतलब के सम्बंध निभाते है ।
एक बात जरूर सोचना जब आप घर के लिये या मन्दिर के लिये भगवान की कोई मूर्ति लाते हो तो क्या मोलभाव नही करते ?????
क्या भगवान का कोई मोलभाव होता हैं ??
दूसरी बात जब आप मन्दिर में भगवान को जो चावल अर्पित करते तो जो आप घर मे बासमती चावल खाते वही चढ़ाते या हल्के सस्ते चावल अर्पित करते हो ।
सोचिये ??????
क्या किसी गरीब को आपने कभी घर बुलाकर घी लगाकर पकवान खिलाये या बासी रोटी जो बची वो दी सोचिये ??????
क्या आप अपने इष्ट देव के मंदिर मे जाकर उनकी सेवा निस्वार्थ भाव से की ?????
क्या आप जानवर को जो अन्न खिलाते वो सस्ता खरीदते हो ????
दरअसल जब हम बीमार पड़ते,या कुछ समस्या आती हैं तो भगवान की शरण मे जाते और कुछ मन्नत मांग लेते,ईश्वर के आशीर्वाद से वो समस्या पूर्ण हो जाती ।लेकिन उसके बाद हम भगवान को भूल जाते है।
फिर जब कोई समस्या आती तो याद आता कि हम पिछली मन्नत मांगी थी वो भूल गए ।
अक्सर ये देखा गया कि जब हम परेशानी में पढ़ते तो भगवान के चक्कर पर चक्कर लगाते, जो जैसा बोलता करते, यदि कोई मन्दिर 10 किलोमीटर दूर भी होगा तो जाओगे ,लेकिन काम पूरा होने पर बोलते की हम तो रोज
मन्दिर आना चाहते पर मन्दिर दूर पड़ता हैं ।
याद रखिये जिस दिन आपने मन्दिर को मन से दूर किया उस दिन से भगवान भी दूर हो जाते हैं ।
कुछ दिन पहले एक फ्रेंड मिली वो मंदिर से आ रही थी बोली पिछ्ले साल एक मन्नत मांगी थी वो तो पूरी हो गई पर उसका प्रसाद चढाना रह गया था … आज फिर एक परेशानी आई तब याद आया कि अभी पहले वाली भी पूरी नही की थी … इसलिए अब पहले वाली के लिए आई हूं और इस बार भी इच्छा पूरी कर दो तो जल्दी ही चढावा चढा दूंगी… वैसे क्या कहेंगें इसे हम … भूलना तो नही कह सकते , ये हमारी भुलक्कड़पन, लापरवाही भी नही है… मतलबीपन हैं … मतलब निकल गया तो … पहचानते नही आपको पता है कि नही दिया तो कोई ना कोई बात नही भगवान कौन सा पूछ्ने आ रहे हैं । लेकिन हमें कोई परेशानी आयी कि भगवान याद आ ही जाते हैं ।
दोस्तों,भगवान आपसे कुछ नही मांगते, वैसे भी देने वाला लेने वाले से क्या मांगेगा । कभी सुना कि किसी भगवान ने बोला कि बेटा तेरा ये काम पूरा कर दूंगा इतने रुपये मुझे अर्पित कर ।
ये बात सही हैं कि हम समय के साथ साथ स्वार्थी हो गए,मतलबी हो गए ,लेकिन एक कल्पना करो कि आप गम्भीर बीमार हो भगवान से प्रार्थना कर रहे कि भगवान मुझे ठीक कर दीजिये , भगवान सपने मैं आकर बोले बेटा ठीक तो कर दूँगा पर पचास लाख का दान कीजिये ????
कैसा लगेगा ।
आपका तो भगवान पर से विश्वास ही उठ जाएगा ।
आप सोचोगे की भगवान भी मतलबी निकले ।
भगवान भक्ति के भूखे हैं,प्रेम के नही,आपका प्रेम जड़ की तरह हो फूल की तरह नही ।प्रेम तो एक फूल की तरह होता है, फूल सुंदर होता है, सुगंधित होता है लेकिन मौसम के साथ वह मुरझा जाता है। भक्ति पेड़ की जड़ की तरह होती है। चाहे जो भी हो, यह कभी नहीं मुरझाती, हमेशा वैसी ही बनी रहती है।
बसंत का समय हो तो पेड़ पर खूब पत्तियां आती हैं। पतझड़ आता है, तो यह फूलों से लद जाता है। सर्दियां आती हैं, यह उजड़ जाता है। बाहर चाहे जो चल रहा हो, लेकिन जड़ें अपना काम लगातार करती रहती हैं। एक पल के लिए भी इधर-उधर विचलित नहीं होतीं।
चलिये आखरी बात की आप भगवान को अपनी बात शेयर करे, अपना समझे, सुख- दुख मैं शामिल कीजिये । पर हर बार मतलब के लिये नही। कभी निस्वार्थ सेवा करके देखिये , आप 1 की सोच भी करोगे तो वो 10 लाख दे देगा । शर्त बस इतनी है कि मन से भी ईश्वर और उसके संसार के किसी भी प्राणी के प्रति मतलब के सम्बंध नही रखो ।
अगर हम किसी को मतलबी कहें तो वो शायद हमसे झगड़ा करने लगेगा। मगर ये अटूट सत्य हैं कि हममें से 95 % लोग मतलबी हैं । हम अपनो के साथ मतलब के सम्बंध रखते रखते भगवान से भी मतलब के सम्बंध निभाते है ।
एक बात जरूर सोचना जब आप घर के लिये या मन्दिर के लिये भगवान की कोई मूर्ति लाते हो तो क्या मोलभाव नही करते ?????
क्या भगवान का कोई मोलभाव होता हैं ??
दूसरी बात जब आप मन्दिर में भगवान को जो चावल अर्पित करते तो जो आप घर मे बासमती चावल खाते वही चढ़ाते या हल्के सस्ते चावल अर्पित करते हो ।
सोचिये ??????
क्या किसी गरीब को आपने कभी घर बुलाकर घी लगाकर पकवान खिलाये या बासी रोटी जो बची वो दी सोचिये ??????
क्या आप अपने इष्ट देव के मंदिर मे जाकर उनकी सेवा निस्वार्थ भाव से की ?????
क्या आप जानवर को जो अन्न खिलाते वो सस्ता खरीदते हो ????
दरअसल जब हम बीमार पड़ते,या कुछ समस्या आती हैं तो भगवान की शरण मे जाते और कुछ मन्नत मांग लेते,ईश्वर के आशीर्वाद से वो समस्या पूर्ण हो जाती ।लेकिन उसके बाद हम भगवान को भूल जाते है।
फिर जब कोई समस्या आती तो याद आता कि हम पिछली मन्नत मांगी थी वो भूल गए ।
अक्सर ये देखा गया कि जब हम परेशानी में पढ़ते तो भगवान के चक्कर पर चक्कर लगाते, जो जैसा बोलता करते, यदि कोई मन्दिर 10 किलोमीटर दूर भी होगा तो जाओगे ,लेकिन काम पूरा होने पर बोलते की हम तो रोज
मन्दिर आना चाहते पर मन्दिर दूर पड़ता हैं ।
याद रखिये जिस दिन आपने मन्दिर को मन से दूर किया उस दिन से भगवान भी दूर हो जाते हैं ।
कुछ दिन पहले एक फ्रेंड मिली वो मंदिर से आ रही थी बोली पिछ्ले साल एक मन्नत मांगी थी वो तो पूरी हो गई पर उसका प्रसाद चढाना रह गया था … आज फिर एक परेशानी आई तब याद आया कि अभी पहले वाली भी पूरी नही की थी … इसलिए अब पहले वाली के लिए आई हूं और इस बार भी इच्छा पूरी कर दो तो जल्दी ही चढावा चढा दूंगी… वैसे क्या कहेंगें इसे हम … भूलना तो नही कह सकते , ये हमारी भुलक्कड़पन, लापरवाही भी नही है… मतलबीपन हैं … मतलब निकल गया तो … पहचानते नही आपको पता है कि नही दिया तो कोई ना कोई बात नही भगवान कौन सा पूछ्ने आ रहे हैं । लेकिन हमें कोई परेशानी आयी कि भगवान याद आ ही जाते हैं ।
दोस्तों,भगवान आपसे कुछ नही मांगते, वैसे भी देने वाला लेने वाले से क्या मांगेगा । कभी सुना कि किसी भगवान ने बोला कि बेटा तेरा ये काम पूरा कर दूंगा इतने रुपये मुझे अर्पित कर ।
ये बात सही हैं कि हम समय के साथ साथ स्वार्थी हो गए,मतलबी हो गए ,लेकिन एक कल्पना करो कि आप गम्भीर बीमार हो भगवान से प्रार्थना कर रहे कि भगवान मुझे ठीक कर दीजिये , भगवान सपने मैं आकर बोले बेटा ठीक तो कर दूँगा पर पचास लाख का दान कीजिये ????
कैसा लगेगा ।
आपका तो भगवान पर से विश्वास ही उठ जाएगा ।
आप सोचोगे की भगवान भी मतलबी निकले ।
भगवान भक्ति के भूखे हैं,प्रेम के नही,आपका प्रेम जड़ की तरह हो फूल की तरह नही ।प्रेम तो एक फूल की तरह होता है, फूल सुंदर होता है, सुगंधित होता है लेकिन मौसम के साथ वह मुरझा जाता है। भक्ति पेड़ की जड़ की तरह होती है। चाहे जो भी हो, यह कभी नहीं मुरझाती, हमेशा वैसी ही बनी रहती है।
बसंत का समय हो तो पेड़ पर खूब पत्तियां आती हैं। पतझड़ आता है, तो यह फूलों से लद जाता है। सर्दियां आती हैं, यह उजड़ जाता है। बाहर चाहे जो चल रहा हो, लेकिन जड़ें अपना काम लगातार करती रहती हैं। एक पल के लिए भी इधर-उधर विचलित नहीं होतीं।
चलिये आखरी बात की आप भगवान को अपनी बात शेयर करे, अपना समझे, सुख- दुख मैं शामिल कीजिये । पर हर बार मतलब के लिये नही। कभी निस्वार्थ सेवा करके देखिये , आप 1 की सोच भी करोगे तो वो 10 लाख दे देगा । शर्त बस इतनी है कि मन से भी ईश्वर और उसके संसार के किसी भी प्राणी के प्रति मतलब के सम्बंध नही रखो ।
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