क्या हमारे ऋषि मुनि साई की उपासना करते थे ?????????
क्या हमारे साधु-संत साई की पूजा करते थे ????????????
क्या हमारे भगवान ने या हमारे महापुरुषों ने कभी "साई" का नाम भी लिया ????????????
क्या हमारे किसी भी धर्मशास्त्र में साई का नाम है ?????????
क्या साई के लक्षण, कर्म या आचरण भगवान या संतो जैसे रहे?????????
----------- इन प्रश्नो का एक ही उत्तर है -- नहीं , नहीं नहीं ।
लेकिन वो मूर्ख लड़के लडकिया जो बचपन में पाँच रुपये की डेरीमिल्क का लालच दिये जाने पर, पड़ोसी को 'पापा' कह दिया करते थे , ऐसे ही व ऐसी प्रवृत्ति के मूर्ख जन्तु ही , सांसारिक स्वार्थ के सिद्ध होने की लालसा में, साई व साई जैसे पाखंडियो को बाप भगवान सब बोल देते है। जो भी लोग कहते है कि इनकी भावनाओ का सम्मान करे , आहत न करे, वो एक प्रयोग करके देखे --- अपनी माता व भाई बंधुओ के सामने ... पड़ोसियो को पापा कहे " ... तब परिणाम देखे और फिर सोचे --- भावना अपने श्रेष्ठ अद्वितीय परमपिता को छोडकर, किसी निकृष्ट को बाप कहने वाले की आहत होती है , या अपने पिता का महत्व व पड़ोसी की निकृष्टता जानने वाली माँ व भाइयो की होती है
मूर्खो की, धूर्तों की भावनाए नहीं कुभावनाए होती है , एक रोग की तरह होती है , जिसे बढ़ाया नहीं बल्कि कड़वी दवाई देकर नष्ट किया जाता हैं । पर ये बाते जो रोग और इलाज दोनों जानता है , वही समझता है, जिसे न रोग का ज्ञान न ही उपचार का , उसकी समझ मे कैसे आए ??
जय श्री राम ।

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