ध्यान रखें कि कोई भी धार्मिक किताब किसी को भी धार्मिक नहीं बना सकती यदि वह धार्मिक प्रवृति का नहीं है या उसकी चेतना जागृत नहीं हुई है |
यह चेतना कब किस समय जागृत होगी वह भी कोई तय नहीं कर सकता | उदाहरण के लिए धार्मिक किताबें तो आईसीसी अलकायदा भी पढ़ते हैं ............धार्मिक किताबें तो कसाई भी पढता है ठग, चोर उचक्के भी | मंदिर मस्जिद भी सभी तरह के लोग जाते हैं |
वे लोग भी सारे कर्मकांड करते हैं पूजा पाठ करते हैं जो किसी को एक रूपये की सहायता नहीं करते लेकिन दौलत की तिजोरी भरी पड़ी है और वे लोग भी वही सब करते हैं जिनके पास एक वक्त की रोटी भी नहीं होती....लेकिन अगर एक रोटी नसीब से मिल भी गई तो किसी दूसरे को अपनी आधी रोटी देने में भी नहीं झिझकते |

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