यह ब्लॉग मेरा एक निजी प्रयास है.... अपने विचारो को साधारण भाषा में अपने मित्रों और अनजान लोगों से भी शेयर करने का। जो मेरी समझ है उससे मैं लिख रही हूँ। यदि कहीं कोई बात अनुचित है या गलतियां हैं या समाज के किसी वर्ग के प्रति शोषण/ या किसी पर शोषक का गलत लेबल लगता है या किसी की भावनाओं को ठेस लगती है या कोई बात गलत लिख गयी है - तो वह मेरे interpretation की भूल हो सकती है।ऐसा होने पर मैं (अग्रिम) क्षमाप्रार्थी हूँ,,,,,,,,,,,,, | यह कोई धार्मिक पुस्तक या शास्त्र आदि नहीं - सिर्फ एक निजी प्रयास है। इससे या इसमें हुई गलतियों से कृपया किसी धर्म / वर्ग / समाज / .... पर कोई आक्षेप न लगाएं। जैईईईईईईईईईईइ श्रीईईईईईईईईईइ कृष्णाआआआआआआआअ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
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जगत मिथ्या है ...............!!!!!!!!!!!!! यह ऐसा वाक्य है जिसे सभी ने रट लिया बिना यह समझे कि ऋषियों ने यह क्यों कहा | जगत मिथ्या कहने वाले पंडितों को कभी तीर्थों में देखो कैसे एक एक रूप ये लिए लड़ते मंरते मिलेंगे | यदि आपने उनको कम पैसे दिए तो दुनिया भर के श्राप देने से नहीं चूकेंगे | और कई बार तो मैंने स्वयं उनको भद्दी गालियाँ देते भी सुना है उन लोगों को जो दक्षिणा दिए बिना निकल जाते हैं | जगत मिथ्या है कहने वालों के मंदिरों से कभी किसी गरीब किसान के लिए फूटी कौड़ी नहीं निकलती चाहे वह आत्महत्या कर ले | लेकिन सोने की ईंटों के रूप में गोदामों पड़े रहते हैं वह मिथ्या धन | जगत मिथ्या कहने वालों को नेताओं और पूंजीपतियों की चापलूसी करते देखा है मैंने और आज भी कई ऐसे संतों-महंतों से परिचित हूँ जो जगत मिथ्या है का पाठ पढ़ाते हैं, लेकिन बुढ़ापे की चिंता में घुले जा रहें हैं | एक बात स्पष्ट रूप से समझ लीजिये कि जैसे ही आप कहते हैं जगत मिथ्या है, उसी क्षण ईश्वर भी मिथ्या हो जाता है और सारे धर्म और धर्म शास्त्र मिथ्या हो जाते हैं | क्योंकि जगत मिथ्या है तो वक्ता और श्रोता भी मिथ्...
गुरु की धारणा मौलिक रूप से पूर्वीय है.............पूर्वीय ही नहीं, भारतीय है......... गुरु जैसा शब्द दुनियां की किसी भाषा में नहीं है। शिक्षक, टीचर, मास्टर ये शब्द हैं: अध्यापक......... लेकिन गुरु जैसा कोई भी शब्द नहीं है.............गुरु के साथ हमारे अभिप्राय ही भिन्न है। पहली बात: शिक्षक से हमारा संबंध व्यावसायिक है, एक व्यवसाय का संबंध है.. गुरु से हमारा संबंध व्यवसायिक नहीं है... आप किसी के पास कुछ सीखने जाते है.. ठीक है, लेनदेन की बात है। आप उससे कुछ उसे भेंट कर देते है, बात समाप्त हो जाती है यह व्यवसाय है.. एक शिक्षक से आप कुछ सीखते है सीखने के बदले में उसे कुछ दे देते है, बात समाप्त हो सकती है......गुरु से जो हम सीखते है उसके बदले में कुछ भी नहीं दिया जा सकता... कोई उपाय देने का नहीं है.. क्योंकि जो गुरु देता है उसका कोई मूल्य नहीं है... जो गुरु देता है, उसे चुकाने का कोई उपाय नहीं है। उसे वापस करने का कोई उपाय नहीं है.......क्योंकि शिक्षक देता है सूचनाएं जानकारियां, इकमेंशन.. गुरु देता है अनुभव.. यह बड़े मजे की बात है कि शिक्षक जो जानकारी देता है, जरुरी नहीं कि वह जानकारी ...
(Bolo Ji Radhey Radhey)
ReplyDeleteहमारी प्रार्थना का मुख्य बिंदु यही हो
कि प्रत्येक जन्म में मेरी परमात्मा में भक्ति हो,
धर्म में मति हो, त्याग-दान देने की शक्ति हो,
वेद के प्रति प्रेम हो और सभी प्राणियों
के प्रति दया की भावना हो।