माता भगवती की कृपा द्धारा ही चराचर जगत चलायमान है , अर्थात हम जो कुछ भी देख रहे हैं ये सब जगतजननी जगदम्बा का अपना ही स्वरुप है , माता के सुन्दर चरित्र का इतिहास बड़े गूढ़ साधन-रहस्यों से ओत-प्रोत है | जिसमें कर्म , भक्ति और ज्ञान तीन प्रकार की मन्दाकिनी साधकों को शीतलता प्रदान करती हैं |सकाम भक्त इसके सेवन से मनोअभिलषित ( मनमाफिक ) दुर्लभतम वस्तु या स्थिति सहज ही प्राप्त कर लेते हैं , और निष्काम भक्त परम दुर्लभ मोक्ष को पाकर कृतार्थ होते हैं |जिनकी अराधना करके स्वयं ब्रह्मा जी इस जगत के सृजनकर्ता हुये , भगवान विष्णु पालनकर्ता हुये तथा भगवान शंकर संहार करने वाले हुये , योगीजन जिनका ध्यान करते हैं और तत्वार्थ जानने वाले मुनिगण जिन्हें मूल-प्रकृति कहते हैं --- स्वर्ग व मोक्ष प्रदान करने वाली उन जगतजननी भगवती को मैं प्रणाम करती हूँ |माँ भगवती मतलब “शक्ति” अर्थात “उर्जा” (power) जीवन के दोनों रूपों --- भौतिक और आध्यात्मिक --- का आधार शक्ति (उर्जा) ही तो है | आध्यात्मिक पक्ष में में आत्मा अर्थात “प्राण शक्ति” ने साथ छोड़ा नहीं कि मृत्यु हुयी नहीं | उसी प्रकार से भौतिक जगत में भी शक्ति (उर्जा) से ही तो सब कुछ चलायमान है | उपयोगी है .........जीवन्त है अन्यथा सब बेकार है |

सूर्य में यदि ताप (शक्ति) नहीं तो , वह सूर्य ही नहीं : हवा को बहने के लिये शक्ति चाहिये , पानी को चलायमान होने के लिये शक्ति चाहिये , पृथ्वी को घूमने के लिये शक्ति चाहिये , जल को वाष्पीकरण होने के लिये , वर्षा को गिरने के लिये , बदल को गरजने के लिये , विजली को कड़कने के लिये , बीज को अंकुरित होने के लिये , पोधे को बृक्ष बनने के लिये , फूल को खिलने के लिये , फल को पकने के लिये , आग को दहकने के लिये , कुम्हार के चक्के को घूमने के लिये , अनाज को उगने के लिये , जीव-जन्तुओं को जिन्दा रहने के लिये , खाने को पकने के लिये , उसको पेट में पचने के लिये , मल-मूत्र त्यागने के लिये , ओजार-हथियार बनाने के लिये ,चलने के लिये , वाहनों के लिये संपर्क-सन्देश साधने के लिये , संतान उत्पत्ति के लिये , संतान को बड़ा होने और पालने के लिये , सभी के लिये , इस ब्रह्माण्ड में प्रत्येक वस्तु के अस्तित्व के लिये , शक्ति (उर्जा) आधारभूत-मौलिक आवश्यकता है | शक्ति है तो आदि है , अन्त है अन्यथा सब शून्य है |अनन्तकोटि ब्रह्माण्डों की अधीश्वरी माँ भगवती (शक्ति) ही सम्पूर्ण विश्व को सत्ता और स्फूर्ति प्रदान करती है | इन्हीं की शक्ति से ब्रह्मादी देवता उत्पन्न होते हैं , जिनसे विश्व की उत्पत्ति होती है | इन्हीं की शक्ति से विष्णु और शिव प्रकट होकर विश्व का पालन और संहार करते हैं |

शिवपुराण के अनुसार भगवती श्री दुर्गा के आविर्भाव की कथा इस प्रकार है --- प्राचीनकाल में दुर्गम नामक एक महाबली दैत्य उत्पन्न हुआ | उसने ब्रह्माजी के वरदान से चारों वेदों को लुप्त कर दिया | वेदों के अदृश्य हो जाने से सारी वैदिक क्रियायें बन्द हो गयीं | उस समय ब्राह्मण और देवता भी दुराचारी हो गये | तीनों लोकों में हाहाकार मच गया | देवताओं की दुर्गमासुर के आत्याचारों से तीनों लोकों की रक्षा करने की प्रार्थना सुनकर , देवी ने ‘एवमस्तु’ कहकर देवताओं को संतुष्ट कर दिया | जब दुर्गमासुर को इस रहस्य का ज्ञान हुआ , तब उसने अपनी आसुरी सेना को लाकर देवलोक को घेर लिया |

करुणामयी माँ ने देवताओं को बचाने के लिये देवलोक के चारों ओर अपने तेजोमण्डल की एक चाहरदीवारी खड़ी कर दी ओर स्वयं घेरे के बाहर आ डटीं | देवी को देखते ही दैत्यों ने उन पर आक्रमण कर दिया | इस बीच देवी के दिब्य शरीर से काली , तारा , छिन्नमष्तिका माता , श्री विधा , भुवनेश्वरी , भैरवी , बगुलामुखी , धूमावती , त्रिपुरसुन्दरी , और मातंगी --- ये दस महाविधायें , अस्त्र-शस्त्र लिये निकलीं तथा देखते ही देखते दुर्गमासुर की सौ अक्षोहिणी सेना को काट डाला | इसके बाद देवी ने दुर्गमासुर का अपने तीखे त्रिशूल से बढ़ कर डाला | दुर्गमासुर को मारने के कारण उनका ‘दुर्गा’ नाम प्रसिद्द हुआ | ‘शताक्षी’ और ‘शाकम्भरी’ भी उन्हीं के नाम हैं | दुर्गतिनाशनी होने के कारण भी वे ‘दुर्गा’ कहलाती हैं |

माँ दुर्गा जी के नौ रूप हैं | इनके नाम क्रमश: इस प्रकार हैं --- शैलपुत्री , ब्रह्मचारिणी , चन्द्रघंटा , कुष्मांडा , स्कंदमाता , कात्यायनी , कालरात्रि , महागौरी और सिद्धिदात्री | माँ दुर्गाजी के द्धारा ये नवरूप धारण किये जाने के विविध हेतु हैं | आदि शक्ति के विभिन्न रूपावतार हैं --- सात्विक , राजसिक और तामसिक | अर्थात शक्ति के अनेक रूपावतार , उनके आख्यान , प्रभाव और महत्त्व अपने आप में इतने विशद हैं कि बड़े-बड़े विद्धान भी इसका पूर्ण वर्णन करने में अपने को असमर्थ पाते हैं |

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