क्या है कृष्ण का अर्थ ?????????????
कृष धातु का एक अर्थ है खेत जोतना ,दूसरा अर्थ है आकर्षित करना।
कृष्ण का अर्थ है विश्व के प्राण ,उसकी आत्मा।
कृष्ण का तीसरा अर्थ है वह तत्व जो सबके 'मैं पन ' में रहता है।
मैं हूँ ,क्योंकि कृष्ण है।
सम्पूर्ण संसार के प्राण हैं कृष्ण
हम सभी समय -समय पर द्वेष वैमनस्य ,क्रोध ,भय ,ईर्ष्या आदि के कारण दुखी होते हैं। जब हम दुखी होते हैं तब यह दुःख अपने तक ही सीमित नहीं रखते। हम औरों को भी दुखी बनाते हैं। जब कोई व्यक्ति दुखी होता है तो आसपास के सारे वातावरण को अप्रसन्न बना देता है ,व उसके सम्पर्क में आने वाले लोगों पर इसका असर होता है। सचमुच यह जीवन जीने का तरीका नहीं है।
हम सभी समय -समय पर द्वेष वैमनस्य ,क्रोध ,भय ,ईर्ष्या आदि के कारण दुखी होते हैं। जब हम दुखी होते हैं तब यह दुःख अपने तक ही सीमित नहीं रखते। हम औरों को भी दुखी बनाते हैं। जब कोई व्यक्ति दुखी होता है तो आसपास के सारे वातावरण को अप्रसन्न बना देता है ,व उसके सम्पर्क में आने वाले लोगों पर इसका असर होता है। सचमुच यह जीवन जीने का तरीका नहीं है।
कृष्ण का अर्थ ???????
वे जो खींच लेते हैं ,वे जो प्रत्येक को अपनी ओर आकर्षित करते हैं ,जो सम्पूर्ण संसार के प्राण हैं -वही हैं कृष्ण। कृष्ण शब्द के अनेक अर्थ हैं।
कृष धातु का एक अर्थ है खेत जोतना ,दूसरा अर्थ है आकर्षित करना। कृष्ण का अर्थ है विश्व के प्राण ,उसकी आत्मा। कृष्ण का तीसरा अर्थ है वह तत्व जो सबके 'मैं पन ' में रहता है। मैं हूँ ,क्योंकि कृष्ण है। मेरा अस्तित्व है ,क्योंकि कृष्ण का अस्तित्व है। अर्थात यदि कृष्ण नहीं हो तो मेरा अस्तित्व भी नहीं रहेगा। अर्थात यदि कृष्ण नहीं हों तो मेरा अस्तित्व भी नहीं होगा। मेरा अस्तित्व पूर्णतया कृष्ण पर निर्भर है। मेरा होना ही कृष्ण के होने का लक्षण या प्रमाण है।
वे जो खींच लेते हैं ,वे जो प्रत्येक को अपनी ओर आकर्षित करते हैं ,जो सम्पूर्ण संसार के प्राण हैं -वही हैं कृष्ण। कृष्ण शब्द के अनेक अर्थ हैं।
कृष धातु का एक अर्थ है खेत जोतना ,दूसरा अर्थ है आकर्षित करना। कृष्ण का अर्थ है विश्व के प्राण ,उसकी आत्मा। कृष्ण का तीसरा अर्थ है वह तत्व जो सबके 'मैं पन ' में रहता है। मैं हूँ ,क्योंकि कृष्ण है। मेरा अस्तित्व है ,क्योंकि कृष्ण का अस्तित्व है। अर्थात यदि कृष्ण नहीं हो तो मेरा अस्तित्व भी नहीं रहेगा। अर्थात यदि कृष्ण नहीं हों तो मेरा अस्तित्व भी नहीं होगा। मेरा अस्तित्व पूर्णतया कृष्ण पर निर्भर है। मेरा होना ही कृष्ण के होने का लक्षण या प्रमाण है।
.......और राधा का अर्थ ?
बरसाने की राधा से गोकुल के कान्हा का प्रेम अद्भुत ,अलौकिक है। भगवती राधा भगवान कृष्ण की प्रेयसी और पराशक्ति हैं इसलिए श्री कृष्ण के नाम से पहले राधा का नाम लिया जाता है। श्रीकृष्ण का कहना है जहां भी राधा का नाम लिया जाता है वहाँ मैं पहुंच जाता हूँ। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि राधा नाम में राधा और कृष्ण दोनों समाये हुए हैं।
'रा 'का अर्थ है राधिका और 'धा 'का अर्थ है धारण करने वाला यानी जिसने संसार को धारण कर रखा है यानी भगवान श्रीकृष्ण। इसे दूसरे अर्थ में यूं भी समझ सकते हैं ,जिसमें धारण करने वाला रमण करता है वह है राधा।
बरसाने की राधा से गोकुल के कान्हा का प्रेम अद्भुत ,अलौकिक है। भगवती राधा भगवान कृष्ण की प्रेयसी और पराशक्ति हैं इसलिए श्री कृष्ण के नाम से पहले राधा का नाम लिया जाता है। श्रीकृष्ण का कहना है जहां भी राधा का नाम लिया जाता है वहाँ मैं पहुंच जाता हूँ। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि राधा नाम में राधा और कृष्ण दोनों समाये हुए हैं।
'रा 'का अर्थ है राधिका और 'धा 'का अर्थ है धारण करने वाला यानी जिसने संसार को धारण कर रखा है यानी भगवान श्रीकृष्ण। इसे दूसरे अर्थ में यूं भी समझ सकते हैं ,जिसमें धारण करने वाला रमण करता है वह है राधा।
इसलिए भगवान कहते हैं राधा नाम जपने वाला मेरे लिए आदरणीय और श्रेष्ठ है। कोई भक्त भले ही मेरी पूजा न करे लेकिन राधा की पूजा करे तो उसे मेरी पूजा का फल स्वत : ही मिल जाता है।कान्हा का ज़िक्र राधा के नाम के बिना अधूरा है।इन दोनों का प्रेम एक आदर्श है। इस प्रेम में राधा की पवित्रता और महानता का इसी से पता लगाया जा सकता है कि पूरी दुनिया इस प्रेमी जोड़े को राधे -कृष्ण के नाम से पुकारती है ,कोई कृष्ण राधे नहीं कहता। पूरा संसार राधे कृष्ण का मन्त्र ही जपता है।
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