एक गृहस्थ ईश्वर के अधिक करीब हो सकता है क्योंकि वह ईश्वर के विधान का अनादर नहीं करता | जबकि त्याग के नाम पर अपनी जिम्मेदारियों से भागे लोग ईश्वर की नजर से गिर जाते हैं क्योंकि वे ईश्वर की रचना का अपमान करते हैं , सन्यास से यदि आप स्वयं को समझ जाते हैं, तो ही सन्यास सार्थक है, वर्ना सन्यास व्यर्थ है |
आध्यात्म और भौतिक जगत एक दूसरे के शत्रु नहीं सहयोगी हैं , आध्यात्म मानसिक समृद्धि है और संसार भौतिक , जबकि अधिकाँश आज भी अध्यात्म और संसार को दो विपरीत ध्रुव मानते हैं |
यदि भौतिक जगत मिथ्या है तो ईश्वर भी मिथ्या है मेरे विचार अनुसार सबसे पहले भौतिक शरीर से मुक्ति पाना चाहिए जो भौतिक जगत की निंदा करते हैं उन्हें , भौतिक शरीर में रहकर, भौतिक जिव्हा से भौतिक जगत की निंदा करना, यह दर्शाता है कि वह अपने शरीर को भौतिक नहीं मानता , और ऐसे लोग जीवन भर ईश्वर की खोज में बाहर उसी तरह भटकते रहते हैं,जैसे कस्तूरी मृग कस्तूरी की
खोज में जंगलों में भटकती है |

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