सन्यासी...!
जिसका परम्परागत अर्थ है, जिसने संसार को त्याग दिया हो, या जिसने हर उस वस्तु का त्याग कर दिया हो जो बाकि लोगों के लिए त्यागना असंभव होता है |
अब थोड़ी गहराई से इनकी सन्यास की परिभाषा को समझें तो सन्यास का अर्थ है विधवा का जीवन जिसमें कोई ख़ुशी न हो, कोई सुख सुविधा न हो, कोई मनोरंजन न हो...... आदि इत्यादि |
आप ईश्वर की खोज पर लगे रहो और विद्वानों ने ईश्वर को हिमालय में कहीं बिठा रखा है इसलिए हिमालय में सन्यासी जाते हैं खोजने के लिए |
वहीँ सन्यास के नियम तय करने वाले ठेकेदार सभी सांसारिक सुख सुविधा भोगते हैं, दुनिया भर के आडम्बरों में लिप्त रहते हैं.... अपनी अपनी रोडवेज़ की गाड़ियाँ चलवाते हैं, दुकाने किराए पर चढ़ाते हैं, फर्जी दस्तावेजों और धन के बल पर आश्रमों, तीर्थों व गरीब किसानों के भूमियों का अधिग्रहण करते फिरते हैं..... लेकिन फिर भी ये श्रद्धेय कहलाते हैं |
इनके आदर सत्कार में कोई कमी नहीं आती | राजनैतिक सदस्य इनके चरणों में नतमस्तक रहते हैं |
मेरे मन में बचपन से ही यह एक कौतुहल का विषय रहा कि क्यों ये धर्म के ठेकेदार स्वयं ईश्वर को खोजने हिमालय पर नहीं जाते ??????
जबकि इन्हें तो पूरी विधि और ठिकाना पता होता है ईश्वर का.....ये लोग तो जब चाहें जिस ईश्वर को चाहें अपना नौकर बना सकते हैं .... इनको तो सभी के वशीकरण के मन्त्रों का ज्ञान होता है |
इनको तो पता होता है कि कौन से ईश्वर किस दिन, कितने बजे कहाँ पर विराजमान होंगे....... लेकिन ये स्वयं कभी नहीं खोजने जाते , जो खोजना चाहता है उसे ये लोग ईश्वर का एड्रेस अवश्य बता देते हैं लेकिन स्वयं उस व्यक्ति से मिले कागज़ के कुछ टुकड़ों पर खुश हो जाते हैं |
किसी का गृह, ईष्ट नाराज हो गया हो, तो उसे प्रसन्न करने के उपाय बताते हैं, लेकिन अपनी बीवी नाराज हो जाये तो हाथ-पैर फूल जाते हैं |
तो ये धर्म के ठेकेदार सन्यास का क्या अर्थ निकालते हैं यह उनकी समस्या है, मेरी या आपकी नहीं ...क्योंकि जो लोग मानवता से परे हैं, जो लोग पाप (किसी निर्दोष को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक पीड़ा देना) में लिप्त हैं मैं उनको यह अधिकार नहीं दे सकती कि वे निर्देश दें |
सन्यास वह नहीं जो ये लोग बताते हैं, सन्यास वह है जो व्यक्ति को स्वयं से परिचित करवाता है ..... सन्यास द्वेष व घृणा नहीं, प्रेम व आनन्द प्रदान करता है |
सन्यास भाले और बरछे पर निर्भर नहीं है, सन्यास सहयोग व ईश्वर (पंचतत्व) के प्रति समर्पण है |
सन्यास ब्रम्हचर्य (ब्रम्हांड के नियम के अनुकूल आचरण करना) है ... जिस प्रकार मनुष्य को छोड़ कर सम्पूर्ण सृष्टि व सृष्टि के प्राणी ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और वह भी शास्त्र को पढ़े या प्रवचन सुने बिना |

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