13 अगस्त, 1961 को रातोंरात दीवार बनाकर शहर को दो टुकड़ों में बांट दिया गया. पूर्वी जर्मन जनता के लोकतांत्रिक आंदोलन के बाद 20 साल पहले यह दीवार ढह गई.
24 साल से भी अधिक समय तक यह दीवार जर्मनों को बांटती रही. ठीक इसी प्रकार भारत को विभाजित किया राजनीति ने धर्म के नाम पर |
लेकिन उस दिन यह विभाजन भी मिट जाएगा बर्लिन की दीवार की तरह जिस दिन हम भी जर्मनों की तरह नेता-भक्ति से मुक्त होकर राष्ट्रभक्ति को अपना लेंगे |
आज तथाकथित कट्टर धार्मिकों में जितनी घृणा भरी हुई है उतनी शायद पशुओं में भी नहीं होगी , एक शेर के सामने भी दूसरे जीव आसानी से विचरण कर सकते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि शेर धार्मिक नहीं है जो अकारण ही किसी पर आक्रमण कर देगा , क्योंकि वे जानते हैं की शेर मानव भी नहीं है जो मजे के लिए शिकार करेगा , क्योंकि वे जानते हैं कि शेर आतंकवादी भी नहीं है जो केवल आतंक मचाने के लिए ही हत्याएं करेगा |
दुर्भाग्य से सम्प्रदायों को हमने धर्म मान लिया और खुद को धार्मिक कहने लगे | वास्तव में सम्प्रदाय और धर्म अलग अलग हैं | सम्प्रदाय भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, लेकिन धर्म तो शाश्वत सनातन और एक ही है "सत्य सनातन धर्म".....
पशु धर्म है पशुओं का और मानवधर्म है मानवों के लिए | लेकिन हम हिन्दू-मुसलमान, सिख, ईसाई हो गये और आश्चर्य की बात है कि इन सम्प्रदायों (जिन्हें अज्ञानता वश हम धर्म कह रहें हैं) के संस्थापक स्वयं उसी सम्प्रदाय के नहीं थे जिनके संस्थापक उन्हें माना जाता है |
न नानक सिख थे और न पैगम्बर मुसलमान, न जीसस ईसाई थे ......
तो कभी कभी सोचती हूँ कि धार्मिक लोगों ने विश्व व मानव जाति का जितना अहित किया है, उतना शायद पशु-पक्षियों ने नहीं किया होगा |
हम धार्मिक लोगों ने जितने नफरत के बीज बोये, उतना शायद लोमड़ी और भेड़ियों ने भी नहीं बोये होंगे | लेकिन फिर भी बेशर्मी से खुद को धर्म-रक्षक और धार्मिक कहे जा रहें हैं |आपस में लोगों को लड़ा रहें हैं, देश को भाषा और संस्कृति के आधार पर बाँट रहें हैं और खुद को राष्ट्रभक्त कह रहें हैं | सभी कहते हैं की ईश्वर एक हैं, लेकिन वह एक ईश्वर है कौन इस बात को लेकर झगड़ रहें हैं ... कोई कह रहा है की अल्लाह तो कोई कोई जीसस…… सबके अपने अपने इकलौते ईश्वर हैं |
और यह सारा झगड़ा पैदा किया गया है राजनैतिकों द्वारा व्यक्तिगत लाभ के लिए, न कि राष्ट्र व मानवजाति के कल्याण के लिए | लेकिन हम जानते हुए भी भेड़चाल का सा जीवन जी रहें और ये भेड़िये हमारा शोषण कर रहें हैं | हमें आपस में लड़ा रहें हैं, भुखमरी और गरीबी में जीने के लिए विवश कर रहें हैं |

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