भागवत सिद्धांत दर्पण--2
(भागवत महिमा)
★ ये भागवत कोई ग्रंथ नही अपितु साक्षात् भगवान का ही स्वरुप है-- भागवत ओर भगवान दोनो मे कोई भेद नही है--
(★ तेनेयं वांङमयी मूर्ति प्रत्यक्षा वर्तते हरे:---
★ मेनिरे भगवद्रूपं शास्त्रं भागवतं कलौ--
★ श्रीमद्भागवताख्योयं प्रत्यक्ष: कृष्ण एव हि---(पद्मपुराण के अंतर्गत भागवत माहात्म )
ईन तीनो श्लोको मे कहा गया की भागवत साक्षात् कृष्ण का ही स्वरुप है--
★ ये बात भी कभी नही भुलनी चाहिये की जहां भागवत कथा होती है वहां स्वयं भगवान विराजमान रहते है-- भगवान स्कंदपुराण मे ब्रह्मा जी से कहते है की " यत्र यत्र चतुर्वक्त्र श्रीमद्भागवतं भवेत्--
गच्छामि तत्र तत्राहं गौर्यथा सुतवत्सला"-- भगवान कहते है की हे चतुर्वक्त्र(चार मुखो वाले ब्रह्मा जी)- जिस तरह गाय अपने बछडे के पीछे पीछे भागती है उसी प्रकार जहां जहां श्रीमद्भागवत की कथा होती है,,वहां वहां मै जाता हूं--- यही बात स्कंदपुराण मे उद्धव जी महाराज कहते है की "श्रीमद्भागवतं शास्त्रं यत्र भागवतैर्यदा --
कीर्त्यते श्रूयते चापि श्रीकृष्ण तत्र निश्चितम्"-- अर्थात् जहां श्रीमद्भागवत की कथा होती है वहां श्रीकृष्ण निश्चित रुप से रहते है--
★ तीसरी बात ये भी हमेशा याद रखो की केवल भगवान ही नही बल्कि जहां जहां कथा होती है वहां भगवान के साथ साथ सारे देवता ,सारे तीर्थ,,सारी नदियां,,सात पुरियां,,सभी पर्वत,,ओर सभी वैष्णव भक्त(मीरा,,ध्रुव,प्रह्लाद,उद्ध
व,,सुरदास,तुलसीदास,ईत्यादि) भी विराजमान रहते है--- प्रमाण के रुप मे श्लोक प्रस्तुत कर रही हूं---
("नित्यं मम कथा यत्र तत्र तिष्ठन्ति वैष्णवा:-- अर्थात् भगवान कहते है की जहां मेरी नित्य कथा होती है वहां सारे वैष्णव भक्त ( सुरदास,तुलसीदास
,मीराबाई,उद्धव,प्रहलाद ,ध्रुव,अर्जुन ईत्यादि)गुप्त रुप से रहते है---
( यत्र यत्र भवेत् पुण्यं शास्त्रं भागवतं कलौ--
तत्र तत्र सदैवाहं भवामि त्रिदशै: सह-- अर्थात् भगवान कहते है की जहां जहां भागवत की कथा होती है वहां वहां मै सभी देवताओ के साथ उपस्थित रहता हूं--
( तत्र तीर्थाणि सर्वाणि नदीनदसरांसि च--
यज्ञा: सप्तपुरी नित्यं पुण्या: सर्वे शिलोच्चया:"-- अर्थात् जहां जहां भागवत की कथा होती है वहां वहां सारी नदियां,,सारे तीर्थ,,सरोवर,यज्ञ,सप्त पुरियां,सभी पर्वत नित्य निवास करते है---
कहने का अभिप्राय: की भले ही हमने गंगा स्नान किया हो या ना किया हो लेकिन अगर हम भागवत कथा मे जब आकर बैठ जाते है तो समझ लेना की सभी तीर्थो मे स्नान करने का फल प्राप्त हो गया-- क्योकि कथा रुपि तीर्थ की बराबरी कोई अन्य तीर्थ नही कर सकता---
★चौथी बात ये हमेशा याद रखनी चाहिये की भगवान की कथा हमारे पितरो को भी संतुष्टि देती है-- शास्त्रो मे लिखा है की "आस्फोटयन्ति च पितरा: नृत्यन्ति च मुहुर्मुहु:"- अर्थात् जो भगवान की कथा मे आकर बैठ जाता है उसके सारे पितर पितर्लोक मे ताली बजा बजाकर नाचते है की हमारे कुल मे कृष्ण कथा सुनने वाला कोई भक्त आ गया-----
★ भागवत की तो एसी महिमा है की अगर कोई भागवत का एक श्लोक या आधा श्लोक भी गाता है तो उसे हजार गायो के दान के समान पुण्य प्राप्त होता है-- ओर एसा भी लिखा है की जो श्रीमद्भागवत शास्त्र को ह्रदय से प्रणाम करता है तो उसे भगवान अपनी भक्ति तक दे देते है-- ईसलिए श्रीमद्भागवत के श्लोको को गाते रहना चाहिये ओर ह्रदय से प्रणाम भी करना चाहिये-- प्रमाण रुप मे श्लोक प्रस्तुत कर रही हूं--
( श्लोकार्धं श्लोकपादं वा नित्यं भागवतोद्भवम्--
पठते श्रृणुयाद् यस्तु गोसहस्त्रफलं लभेत्--- अर्थात् जो प्रतिदिन भागवत के आधे श्लोक या चौथाई श्लोक का पाठ या श्रवण करता है उसे हजार गाय के दान के समान पुण्य प्राप्त होता है--
उत्थाय प्रणमेद् यो वै श्रीमद्भागवतं नर:--
धनपुत्रांस्तथा दारान् भक्तिं च प्रददाम्यहम्--"-भगवान कहते है की जो खडा होकर श्रीमद्भागवत को ह्रदय से प्रणाम करता है उसे मै धन,पुत्र,स्त्री,ओर अपनी भक्ति प्रदान करता हूं--
★ ईस भागवत मे सभी शास्त्रो/
पुराणो का सार भरा है-- "सर्ववेदेतिहासानां सारं सारं समुद्धृतम्"-- आप जानते है की वृक्ष का सार वृक्ष का फल होता है-- उसी प्रकार सभी ग्रंथो को अगर आप सुनें लेकिन अगर भागवत रुपि सार को नही सुना तो जीवन मे रस नही आयेगा-- जीवन मे रस तो तब आयेगा जब आप सभी ग्रंथो के सार रुप श्रीमद्भागवत का रसपान करेंगे-- तभी तो पुज्य गुरुदेव कहा करते है की ये श्रीमद्भागवत ग्रंथ तो डुबने वाला ग्रंथ है-- ईसे डुबकर पीयो---..... बोलिए श्रीमद्भागवत महापुराण की जय--
जय जय श्री राधे--...
(भागवत महिमा)
★ ये भागवत कोई ग्रंथ नही अपितु साक्षात् भगवान का ही स्वरुप है-- भागवत ओर भगवान दोनो मे कोई भेद नही है--
(★ तेनेयं वांङमयी मूर्ति प्रत्यक्षा वर्तते हरे:---
★ मेनिरे भगवद्रूपं शास्त्रं भागवतं कलौ--
★ श्रीमद्भागवताख्योयं प्रत्यक्ष: कृष्ण एव हि---(पद्मपुराण के अंतर्गत भागवत माहात्म )
ईन तीनो श्लोको मे कहा गया की भागवत साक्षात् कृष्ण का ही स्वरुप है--
★ ये बात भी कभी नही भुलनी चाहिये की जहां भागवत कथा होती है वहां स्वयं भगवान विराजमान रहते है-- भगवान स्कंदपुराण मे ब्रह्मा जी से कहते है की " यत्र यत्र चतुर्वक्त्र श्रीमद्भागवतं भवेत्--
गच्छामि तत्र तत्राहं गौर्यथा सुतवत्सला"-- भगवान कहते है की हे चतुर्वक्त्र(चार मुखो वाले ब्रह्मा जी)- जिस तरह गाय अपने बछडे के पीछे पीछे भागती है उसी प्रकार जहां जहां श्रीमद्भागवत की कथा होती है,,वहां वहां मै जाता हूं--- यही बात स्कंदपुराण मे उद्धव जी महाराज कहते है की "श्रीमद्भागवतं शास्त्रं यत्र भागवतैर्यदा --
कीर्त्यते श्रूयते चापि श्रीकृष्ण तत्र निश्चितम्"-- अर्थात् जहां श्रीमद्भागवत की कथा होती है वहां श्रीकृष्ण निश्चित रुप से रहते है--
★ तीसरी बात ये भी हमेशा याद रखो की केवल भगवान ही नही बल्कि जहां जहां कथा होती है वहां भगवान के साथ साथ सारे देवता ,सारे तीर्थ,,सारी नदियां,,सात पुरियां,,सभी पर्वत,,ओर सभी वैष्णव भक्त(मीरा,,ध्रुव,प्रह्लाद,उद्ध
व,,सुरदास,तुलसीदास,ईत्यादि) भी विराजमान रहते है--- प्रमाण के रुप मे श्लोक प्रस्तुत कर रही हूं---
("नित्यं मम कथा यत्र तत्र तिष्ठन्ति वैष्णवा:-- अर्थात् भगवान कहते है की जहां मेरी नित्य कथा होती है वहां सारे वैष्णव भक्त ( सुरदास,तुलसीदास
,मीराबाई,उद्धव,प्रहलाद ,ध्रुव,अर्जुन ईत्यादि)गुप्त रुप से रहते है---
( यत्र यत्र भवेत् पुण्यं शास्त्रं भागवतं कलौ--
तत्र तत्र सदैवाहं भवामि त्रिदशै: सह-- अर्थात् भगवान कहते है की जहां जहां भागवत की कथा होती है वहां वहां मै सभी देवताओ के साथ उपस्थित रहता हूं--
( तत्र तीर्थाणि सर्वाणि नदीनदसरांसि च--
यज्ञा: सप्तपुरी नित्यं पुण्या: सर्वे शिलोच्चया:"-- अर्थात् जहां जहां भागवत की कथा होती है वहां वहां सारी नदियां,,सारे तीर्थ,,सरोवर,यज्ञ,सप्त पुरियां,सभी पर्वत नित्य निवास करते है---
कहने का अभिप्राय: की भले ही हमने गंगा स्नान किया हो या ना किया हो लेकिन अगर हम भागवत कथा मे जब आकर बैठ जाते है तो समझ लेना की सभी तीर्थो मे स्नान करने का फल प्राप्त हो गया-- क्योकि कथा रुपि तीर्थ की बराबरी कोई अन्य तीर्थ नही कर सकता---
★चौथी बात ये हमेशा याद रखनी चाहिये की भगवान की कथा हमारे पितरो को भी संतुष्टि देती है-- शास्त्रो मे लिखा है की "आस्फोटयन्ति च पितरा: नृत्यन्ति च मुहुर्मुहु:"- अर्थात् जो भगवान की कथा मे आकर बैठ जाता है उसके सारे पितर पितर्लोक मे ताली बजा बजाकर नाचते है की हमारे कुल मे कृष्ण कथा सुनने वाला कोई भक्त आ गया-----
★ भागवत की तो एसी महिमा है की अगर कोई भागवत का एक श्लोक या आधा श्लोक भी गाता है तो उसे हजार गायो के दान के समान पुण्य प्राप्त होता है-- ओर एसा भी लिखा है की जो श्रीमद्भागवत शास्त्र को ह्रदय से प्रणाम करता है तो उसे भगवान अपनी भक्ति तक दे देते है-- ईसलिए श्रीमद्भागवत के श्लोको को गाते रहना चाहिये ओर ह्रदय से प्रणाम भी करना चाहिये-- प्रमाण रुप मे श्लोक प्रस्तुत कर रही हूं--
( श्लोकार्धं श्लोकपादं वा नित्यं भागवतोद्भवम्--
पठते श्रृणुयाद् यस्तु गोसहस्त्रफलं लभेत्--- अर्थात् जो प्रतिदिन भागवत के आधे श्लोक या चौथाई श्लोक का पाठ या श्रवण करता है उसे हजार गाय के दान के समान पुण्य प्राप्त होता है--
उत्थाय प्रणमेद् यो वै श्रीमद्भागवतं नर:--
धनपुत्रांस्तथा दारान् भक्तिं च प्रददाम्यहम्--"-भगवान कहते है की जो खडा होकर श्रीमद्भागवत को ह्रदय से प्रणाम करता है उसे मै धन,पुत्र,स्त्री,ओर अपनी भक्ति प्रदान करता हूं--
★ ईस भागवत मे सभी शास्त्रो/
पुराणो का सार भरा है-- "सर्ववेदेतिहासानां सारं सारं समुद्धृतम्"-- आप जानते है की वृक्ष का सार वृक्ष का फल होता है-- उसी प्रकार सभी ग्रंथो को अगर आप सुनें लेकिन अगर भागवत रुपि सार को नही सुना तो जीवन मे रस नही आयेगा-- जीवन मे रस तो तब आयेगा जब आप सभी ग्रंथो के सार रुप श्रीमद्भागवत का रसपान करेंगे-- तभी तो पुज्य गुरुदेव कहा करते है की ये श्रीमद्भागवत ग्रंथ तो डुबने वाला ग्रंथ है-- ईसे डुबकर पीयो---..... बोलिए श्रीमद्भागवत महापुराण की जय--
जय जय श्री राधे--...
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